Indrani Nooyi कैसे बनी Pepsico की पहली महिला CEO?

इंद्रा नूयी: पेप्सिको की पहली महिला सीईओ बनने की प्रेरणादायक यात्रा।

क्या आपने कभी सोचा है कि एक मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की बेटी, जिसने चेन्नई की गलियों में अपने बचपन के दिन बिताए, विश्व की सबसे शक्तिशाली कंपनियों में से एक, पेप्सिको, की कमान कैसे संभाल सकती है? इंद्रा नूयी की कहानी न केवल प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि यह दर्शाती है कि दृढ़ संकल्प, रणनीतिक सोच और साहस के साथ असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। उनकी यात्रा जटिलताओं से भरी है, जिसमें सांस्कृतिक बाधाओं को तोड़ने से लेकर कॉर्पोरेट जगत में नए मानदंड स्थापित करने तक का समावेश है। आइए, इस असाधारण महिला के जीवन और उपलब्धियों पर एक नजर डालें, जिसमें वाक्यों की विविधता और विचारों की गहराई उनके व्यक्तित्व की तरह ही चमकती है।
प्रारंभिक जीवन: सपनों की नींव 28 अक्टूबर 1955 को चेन्नई (तब मद्रास) के एक तमिल ब्राह्मण परिवार में जन्मी इंद्रा कृष्णमूर्ति (नूयी) का बचपन सादगी और अनुशासन से भरा था। उनके पिता एक बैंक अधिकारी थे, जबकि उनकी मां, बिना औपचारिक शिक्षा के, घर की रणनीतिकार थीं। मां की बनाई बौद्धिक चुनौतियां, जैसे रात के खाने के दौरान यह कल्पना करना कि वे राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनकर क्या करेंगी, ने इंद्रा और उनकी बहन चंद्रिका में नेतृत्व की चिंगारी जलाई। होली एंजल्स एंग्लो इंडियन हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ाई के दौरान इंद्रा ने न केवल अकादमिक उत्कृष्टता दिखाई, बल्कि एक ऑल-गर्ल्स रॉक बैंड में गिटार बजाकर अपनी बागी और रचनात्मक पक्ष को भी प्रदर्शित किया।
उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित में स्नातक की डिग्री हासिल की, फिर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, कोलकाता से एमबीए पूरा किया। लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा उन्हें भारत की सीमाओं से परे ले गई। 1978 में, येल स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में दाखिला लेने के लिए अमेरिका पहुंचीं, जहां उन्होंने रात में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी कर अपनी पढ़ाई का खर्च उठाया। यह वह समय था जब उनके सपनों ने वैश्विक मंच पर उड़ान भरना शुरू किया।
कॉर्पोरेट जगत में प्रवेश: रणनीति की जादूगरनी इंद्रा की कॉर्पोरेट यात्रा जॉनसन एंड जॉनसन और मेट्टूर बीर्डसेल जैसी कंपनियों में प्रोडक्ट मैनेजर के रूप में शुरू हुई, लेकिन उनकी असली प्रतिभा तब चमकी जब उन्होंने बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) में छह साल तक रणनीतिक परियोजनाओं का नेतृत्व किया। इसके बाद मोटोरोला और एबीबी (असीया ब्राउन बोवेरी) में उनकी भूमिकाओं ने उन्हें एक दूरदर्शी रणनीतिकार के रूप में स्थापित किया। 1994 में, जब पेप्सिको के सीईओ वेन कैलोवे और जनरल इलेक्ट्रिक के जैक वेल्च दोनों ने उन्हें अपने संगठन में शामिल करने की कोशिश की, इंद्रा ने पेप्सिको को चुना। यह निर्णय उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
पेप्सिको में शामिल होने के बाद, इंद्रा ने तेजी से तरक्की की। 1994 में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (रणनीतिक योजना) के रूप में शुरुआत करने वाली इंद्रा 2001 तक कंपनी की प्रेसिडेंट और चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर बन गईं। उनकी रणनीतिक दूरदर्शिता ने पेप्सिको को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने 1997 में ट्राइकॉन (अब यम! ब्रांड्स, जिसमें केएफसी, पिज्जा हट और टैको बेल शामिल हैं) के विनिवेश, 1998 में ट्रॉपिकाना के अधिग्रहण, और 2001 में क्वेकर ओट्स (गटोरेड सहित) के साथ विलय जैसे बड़े फैसले लिए। इन कदमों ने पेप्सिको को सिर्फ एक सॉफ्ट ड्रिंक कंपनी से एक संतुलित उपभोक्ता उत्पाद कंपनी में बदल दिया।
पेप्सिको की पहली महिला सीईओ: इतिहास रचने का क्षण 2006 में, जब इंद्रा नूयी को पेप्सिको का सीईओ नियुक्त किया गया, यह न केवल उनके करियर का चरम था, बल्कि कॉर्पोरेट इतिहास में एक मील का पत्थर भी था। वे न केवल पेप्सिको की पहली महिला सीईओ बनीं, बल्कि फॉर्च्यून 50 कंपनी का नेतृत्व करने वाली पहली रंगीन महिला और पहली अप्रवासी भी थीं। इस भूमिका में, उन्होंने "परफॉर्मेंस विद पर्पस" का दर्शन पेश किया, जो न केवल वित्तीय सफलता पर केंद्रित था, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता, स्वस्थ उत्पादों और कर्मचारी सशक्तिकरण को भी प्राथमिकता देता था।
उनके 12 साल के कार्यकाल में, पेप्सिको का वार्षिक राजस्व 35 अरब डॉलर से बढ़कर 63.5 अरब डॉलर हो गया, और कंपनी का कुल शेयरधारक रिटर्न 162% रहा। इंद्रा ने पेप्सिको के पोर्टफोलियो को स्वस्थ विकल्पों जैसे लो-कैलोरी ड्रिंक्स और न्यूट्रिशनल स्नैक्स की ओर मोड़ा, जिससे कंपनी ने उपभोक्ताओं की बदलती प्राथमिकताओं के साथ कदम मिलाया। उन्होंने डिजाइन थिंकिंग को अपनाया, जैसे पेप्सी स्पायर टचस्क्रीन फाउंटेन मशीन और माउंटेन ड्यू किकस्टार्ट जैसे उत्पादों के साथ, जो विशेष रूप से महिलाओं को आकर्षित करने के लिए डिज़ाइन किए गए थे।
चुनौतियां और व्यक्तिगत बलिदान इंद्रा की सफलता की राह आसान नहीं थी। एक महिला, अप्रवासी और रंगीन व्यक्ति के रूप में, उन्हें कॉर्पोरेट जगत में कई रूढ़ियों को तोड़ना पड़ा। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना। 1980 में राज नूयी से शादी करने वाली इंद्रा की दो बेटियां, प्रीता और तारा, हैं। वे अक्सर अपनी मां होने की कमियों को स्वीकार करती हैं, खासकर तब जब उनकी बेटियां उनकी व्यस्तता के कारण उनसे नाराज़ होती थीं। उनकी मां ने उन्हें सिखाया कि घर में वे सिर्फ पत्नी और मां हैं, न कि सीईओ, जिसने उन्हें विनम्रता और जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया।
2018 में, इंद्रा ने सीईओ पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन 2019 की शुरुआत तक चेयरपर्सन के रूप में कार्य करती रहीं। इसके बाद, उन्होंने अमेज़न, फिलिप्स और मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर जैसे संगठनों के बोर्ड में शामिल होकर अपनी नेतृत्व यात्रा को जारी रखा। उनकी आत्मकथा, माय लाइफ इन फुल, न केवल उनकी उपलब्धियों का दस्तावेज है, बल्कि कार्यस्थल में महिलाओं के लिए समानता और बेहतर देखभाल प्रणाली की वकालत भी करती है।
पुरस्कार और विरासत इंद्रा नूयी को उनके योगदान के लिए असंख्य सम्मान मिले। भारत सरकार ने उन्हें 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किया, और 2019 में उनकी तस्वीर स्मिथसोनियन नेशनल पोर्ट्रेट गैलरी में शामिल की गई। 2021 में, उन्हें नेशनल वीमन्स हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया। फोर्ब्स और फॉर्च्यून ने उन्हें लगातार दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं में शुमार किया।
निष्कर्ष: एक प्रेरणा का प्रतीक इंद्रा नूयी की कहानी सिर्फ एक कॉर्पोरेट सफलता की कहानी नहीं है; यह साहस, नवाचार और सामाजिक जिम्मेदारी की कहानी है। उन्होंने न केवल पेप्सिको को एक नई दिशा दी, बल्कि दुनिया भर की महिलाओं और अप्रवासियों के लिए एक मिसाल कायम की। उनकी यात्रा हमें सिखाती है कि जटिलताओं को गले लगाकर और विविधता में ताकत ढूंढकर, हम न केवल अपने सपनों को हासिल कर सकते हैं, बल्कि दुनिया को बेहतर भी बना सकते हैं।
यह लेख न केवल इंद्रा के जीवन की गहराई को दर्शाता है, बल्कि वाक्यों की लंबाई और संरचना में विविधता (बर्स्टिनेस) और विचारों की जटिलता (पेरप्लेक्सिटी) को भी शामिल करता है, जैसा कि आपने अनुरोध किया था।
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