धीरूभाई अंबानी: एक साधारण सपने से असाधारण साम्राज्य तक की यात्रा
भारत के व्यापारिक क्षितिज पर कुछ नाम ऐसे हैं जो धीरूभाई अंबानी की तरह चमकते हैं। धीरजलाल हीराचंद अंबानी, जिन्हें प्यार से धीरूभाई कहा जाता है। ने ना केवल एक कंपनी, बल्कि एक विचारधारा को जन्म दिया–रिलायंस इंडस्ट्रीज। यह कहानी है एक साधारण गुजराती परिवार से निकले उस शख्स की, जिसने 500 रूपये की छोटी सी पूंजी से भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साम्राज्य की नींव रखी। उनकी यह यात्रा, जो मेहनत, दूरदर्शिता और अदम्य साहस से बनी गई, आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है।
बचपन और शुरुआती संघर्ष: अभावों में पला सपना
19 दिसंबर 1932 को गुजरात के चोरवाड़ गांव में एक स्कूल शिक्षक के घर में जन्मे धीरूभाई का बचपन आर्थिक तंगी की छाया में बीता। पिता हीराचंद गोर्धनभाई अंबानी और माता जमनाबेन पांच बच्चों में धीरूभाई तीसरे थे। परिवार की माली हालत इतनी कमजोर थी कि शिक्षा को बीच में ही अलविदा कहना बड़ा। मात्र 16 वर्ष की उम्र में, धीरूभाई ने घर की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए यमन का रुख किया। वहां, उन्होंने ए. बेस्से एंड कंपनी में मामूली नौकरी शुरू किया, जहां उनकी पहली तनख्वाह थी मात्र 300 रूपये। लेकिन इस साधारण शुरुआत में ही उनके असाधारण भविष्य की नींव छिपी थी यमन में रहते हुए धीरूभाई ने व्यापार की बारीकियां सीखीं। एक दिलचस्प किस्सा है–उन्होंने वहां के रियल सिक्कों के चांदी को पिघलाकर उसका मूल्य बाजार में बेचकर मुनाफा कमाया। यह थी उनकी दूरदृष्टि, जो हर मौके को सोने में बदल देती थी। 1958 में, वह 500 रूपये की छोटी पूंजी लेकर मुंबई लौटे, जहां उनके सपनों ने नया आकार लिया।
रिलायंस की नींव: मिट्टी से सोना बनाने की कला
मुंबई के भूलेश्वर में एक छोटे से दो कमरे के फ्लैट में रहते हुए, धीरूभाई ने अपने चचेरे भाई चंपकलाल दमानी के साथ मिलकर रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन की शुरुआत की। शुरुआत में मशालों और कपड़ों का व्यापार किया, लेकिन उनकी नजर हमेशा कुछ बड़ा करने पर थी। 1965 में चंपकलाल के साथ साझेदारी टूटने के बाद, धीरूभाई ने अपने अकेले दम पर रिलायंस को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। 1966 में, अहमदाबाद के नरोदा में पहला टेक्सटाइल मिल स्थापित किया गया, और 'विमल' ब्रांड का जन्म हुआ। यह वह दौर था जब धीरूभाई ने न केवल गुणवत्ता पर ध्यान दिया, बल्कि कम मुनाफे के साथ ज्यादा बिक्री की रणनीति अपनाई। उनकी यह सोच बाजार में क्रांति लाई। 1977 में, रिलायंस को शेयर बाजार में सूचीबद्ध किया गया, और यह भारत का पहला आईपीओ था, जिसने आम निवेशकों को शेयर बाजार से जोड़ा। उनकी वार्षिक आम सभाएं इतनी लोकप्रिय थी कि उन्हें स्टेडियम में आयोजित करना पड़ा।
जोखिम और रणनीति: बाजार का जादूगर
धीरूभाई की सफलता का राज उनकी जोखिम लेने की क्षमता और बाजार की गहरी समझ थी। 1980 के दशक में, जब रिलायंस के शेयरों को 'बेयर कार्टेल' ने कम करने की कोशिश की धीरूभाई ने अपने सहमर्थकों, जिन्हें 'रिलायंस के दोस्त' कहा जाता था, के साथ मिलकर बाजार को स्थिर किया। इस घटना ने उनकी रणनीतिक कुशलता को साबित किया। हालांकि, धीरूभाई पर बाजार हेरफेर और रणनीतिक रसूख के आरोप भी लगे। फिर भी, निवेशकों का उन पर भरोसा अटूट रहा, क्योंकि उनकी कंपनी हमेशा अच्छा लाभांश देती थी। उनकी दृष्टि केवल टेक्सटाइल तक सीमित नहीं रही; उन्होंने पेट्रोकेमिकल्स, टेलीकॉम ऊर्जा और रिटेल जैसे छेत्रों में रिलायंस का विस्तार किया। आज रिलायंस भारत की सबसे बड़ी निजी कंपनी है, जो वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान रखती है।
निजी जीवन और विरासत
धीरूभाई का निजी जीवन उतना ही प्रेरणादायक था। उनकी पत्नी कोकिलाबेन उनके हर कदम पर सहारा बनीं। उनके चार बच्चे–मुकेश, अनिल, नीना कोठरी और दीप्ति सलगांवकर–उनके मूल्यों को आगे बढ़ा रहे हैं। 1986 में, पहला स्ट्रोक झेलने के बाद, धीरूभाई ने कंपनी कमान अपने बेटों मुकेश और अनिल को सौंपी। 2002 में, 69 वर्ष की आयु में, एक और स्ट्रोक के बाद उनका निधन हो गया। उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग सामिल हुए। जो उनकी लोकप्रियता का प्रमाण था। धीरूभाई के मृत्यु के बाद, रिलायंस दो हिस्से में बंट गई–मुकेश अंबानी के नेतृत्व में रिलायंस इंडस्ट्रीज और अनिल अंबानी के नेतृत्व में धीरूभाई अंबानी ग्रुप। मुकेश ने कंपनी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, जिसमें जामनगर रिफाइनरी मेगा प्रोजेक्ट्स सामिल हैं, जो आज भारत के जीडीपी 3% योगदान देता है।
पुरुस्कार और सम्मान
धीरूभाई को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिलें। 2000 में उन्हें केमटेक फाउंडेशन द्वारा 'मैन ऑफ द सेंचुरी' और 1998 में व्हार्टन स्कूल द्वारा डीन मेडल से नवाजा गया। 2016 में, मरणोपरांत भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण, प्रदान किया गया।
प्रेरणा का स्रोत
धीरूभाई अंबानी की कहानी यह सिखाती है कि सपने कितने बड़े क्यों न हों, दृढ़ संकल्प और मेहनत से उन्हें हकीकत में बदला जा सकता है। उनकी एक महसूर उक्ति थी, “अगर आप गरीब पैदा हुए हैं, तो आप की गलती नहीं है, लेकिन अगर आप गरीब मरते हैं, तो यह आपकी गलती है।” यह वाक्य उनकी जिंदगी का सार है। आज रिलायंस इंडस्ट्रीज न केवल भारत की सबसे बड़ी कंपनी है, बल्कि यह विश्व की सबसे प्रभावशाली कंपनियों में से एक है। धीरूभाई ने साबित किया कि साधारण शुरुआत से भी असाधारण सफलता हासिल की जा सकती है। उनकी यह कहानी हर उस व्यक्ति के लिए मिशाल है, जो अपने सपनों को सच करने की हिम्मत रखता है।